लेखनी कहानी -10-Apr-2023 क्या यही प्यार है
भाग 3
आनंद की आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगी । लिली ने आनंद को बहुत संभाला मगर उसका क्रंदन कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था । तब लिली ने उसे अपने आगोश में भर लिया और उसकी पीठ पर हल्के हल्के से अपना हाथ फिराकर सहलाने लगी । दर्द की सही दवा सुहानुभूति और अतिशय प्रेम ही है । नारी में इतनी शक्ति होती है कि वह विशाल पर्वतों को भी दरका सकती है फिर दर्द की तो बिसात ही क्या है । अनुसूइया के निर्मल प्रेम ने आनंद के घावों पर मरहम का काम किया । अनुसूइया के बदन की गर्मी ने आनंद के सब गमों को पिघला दिया और वे अब पिघल पिघल कर उसकी आंखों के रास्ते बाहर निकल रहे थे ।
फिर अनुसूइया ने आनंद को एक गिलास पानी पिलाया तब आनंद संयत हो पाया ।
"आप कितनी अच्छी हैं अनुसूइया जी" आनंद ने भाव विह्वल होकर कहा
"भले लोगों की यही तो समस्या है कि वे सभी को अपने जैसा भला ही मानते हैं । दुनिया बहुत खराब है सर , इतनी जल्दी किसी अपरिचित के बारे में धारणा बनाना ठीक नहीं है" । अनुसूइया ने एक मधुर मुस्कान के साथ कहा
"अब आप अपरिचित कहां हैं ? आप तो जन्मों जन्मों की जानी पहचानी सी लगती हैं । जो निर्मल प्रेम का सागर आपके अंदर हिलोरें मार रहा है वह इस मिथ्या जगत में कहां है ? आप इस दलदल में भी कमल की तरह खिल रही हैं । लगता है कि आप एक संस्कारित परिवार से हैं लेकिन किसी मजबूरी के कारण यहां सेवाऐं दे रही हैं । जरा अपने बारे में बताइए न" ? आनंद के स्वर में आग्रह, याचना , विनय ,अधीरता और उत्कंठा थे ।
अनुसूइया ने दीर्घ श्वांस छोड़ते हुए कहा "बहुत बुरी कहानी है मेरी । भगवान करे ऐसी कहानी और किसी की ना हो । मेरा नाम अनुसूइया शर्मा है । मेरे पिता श्री कपिल शर्मा एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे । माता अरुंधती भी उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थीं । दोनों पति पत्नी महर्षि याज्ञवल्क्य की तरह विद्वान और गार्गी की तरह विदुषी थे । इसीलिए मेरा नाम उन्होंने महान ॠषि अत्रि की पत्नी महासती , पतिव्रताओं में श्रेष्ठ अनुसूइया के नाम पर रखा था । मेरा एक छोटा भाई था जो सूर्य की भांती तेजस्वी था । हमारा एक संस्कारवान और समृद्ध परिवार था । हम लोग बड़े आनंद के साथ रह रहे थे । प्रयागराज में रहते रहते हमें स्वर्ग जैसा आनंद आ रहा था ।
तब वहां कुछ हिस्ट्रीशीटर्स ने "रंगदारी" का गंदा धंधा शुरू कर दिया । उनमें से एक बड़ा नामी गिरामी गुंडा, बदमाश और नेता रईस खान के किसी गुर्गे ने मेरे पापा से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी । इसे सुनकर हमारे होश उड़ गए । हमारे पास इतने पैसे नहीं थे । हम लोग बहुत परेशान थे मगर कुछ कर नहीं सकते थे । पापा ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई पर शायद उसके राजनीतिक रसूख या पैसों के बल पर पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती थी तो हमारे लिये वह क्या करती ? पुलिस ने हमें उस मवाली के हवाले कर दिया ।
जब उसके पास पैसे नहीं पहुंचे तो एक दिन उसके चार गुर्गे हमारे घर आ धमके और पैसों की मांग करने लगे । तब तक पापा केवल पचास लाख का ही इंतजाम कर पाये थे । रईस खान के गुर्गों ने पापा को मारना पीटना शुरू कर दिया । मम्मी उनके पैरों में गिर पड़ी मगर वे पत्थर दिल नहीं पसीजे । तभी उनमें से एक गुण्डे की निगाह मेरे ऊपर पड़ गई और वह जोर से बोला "उस्ताद , देखो तो , क्या जबरदस्त माल है । क्यों न हम इसे ही ले जाकर बॉस को दे दें । बॉस बहुत खुश हो जाऐंगे इस पटाखा को देखकर" ।
इस बात से बाकी सब गुण्डों का ध्यान मेरी ओर गया । सब गुण्डे मुझे गौर से देखने लगे । मुझे ऐसा लग रहा था कि वे गुण्डे मुझे देख नहीं रहे थे बल्कि मुझे "भोग" रहे थे । मैं लाज के मारे वहीं बैठ गई और मैंने अपने शरीर को उनकी गंदी नजरों से बचाने के लिए सिकोड़ लिया । तब उन गुण्डों के सरदार ने कहा
"अरे वाह ! तूने तो बहुत शानदार बात कही है जुम्मन । ये तो वाकई बहुत जबरदस्त माल लग रही है । लगता है कि यह अभी तक "अनछुई" है । बॉस के पास तो रोज एक से बढ़कर एक टनाटन माल आता है । उनको क्या कमी है । हमारे यहां ही "सूखा" पड़ा हुआ है । तूने बढिया याद दिलाया । इसे देखकर मेरे मन में भी आग भड़क उठी है । मुझे लगता है कि तुम लोगों की भी ऐसी ही हालत हो रही होगी जैसी मेरी हो रही है । चलो , आज अपने जिस्म की भूख इसके जिस्म से ही मिटाते हैं" । और यह कहकर वह राक्षस जोर से अट्टहास करके हंस पड़ा ।
उनके कुत्सित इरादे जानकर मेरी चीख निकल गई । मैं भागकर एक कमरे में घुस गई और अंदर से लॉक कर दिया । इतने में मेरे मम्मी पापा के गिड़गिड़ाने की आवाज आई । वे उन दुष्टों से दया की भीख मांग रहे थे जो खुद नहीं जानते कि दया किस चिड़िया का नाम है ।
तब उन गुण्डों ने मेरे कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और मेरे बाल पकड़कर घसीटते हुए मुझे लिविंग रूम में ले आये । तब सरदार ने कहा "अरे जुम्मन मियां । तू तो कह रहा था कि ये टनाटन माल है । हमें कैसे पता चलेगा कि यह टनाटन माल है या नहीं ? जरा दारी के कपड़े तो हटा और दिखा कि माल कैसा है" ?
मैं रो रोकर उनसे छोड़ने की प्रार्थना करने लगी और जुम्मन मेरे कपड़े नोचने लगा । मेरे माता पिता और छोटे भाई के सामने ही उन गुण्डों ने मुझे निर्वस्त्र कर दिया । गुस्से में आकर मेरी मम्मी ने सरदार के मुंह पर थूक दिया । इससे सरदार बहुत गुस्सा हो गया और उसने मेरे छोटे भाई को गोली मार दी । इस घटना से मैं बेहोश हो गई । जब मुझे होश आया तो मैंने पाया कि उनमें से एक आदमी मेरे ऊपर चढा हुआ है और मेरे साथ बलात्कार कर रहा है । अब तो आंसू भी नहीं बचे थे मेरी आंखों में । मेरे सामने ही मम्मी और पापा के मृत शरीर पड़े हुए थे ।
उन चारों ने बारी बारी से मेरे साथ बलात्कार किया । घर में रखे गहने , नकदी और कीमती सामान लेकर वे जाने लगे कि अचानक सरदार बोला "अरे, इस छमिया को भी उठा लाओ । अभी मन नहीं भरा है इससे" ।
एक गुण्डे ने मेरे मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और मेरे हाथ पांव बांधकर मुझे उठाकर बोरे की तरह गाड़ी में पटक दिया । मुझे कहीं पर ले जाया गया । वहां रोज रात को मेरे साथ बारी बारी से बलात्कार होता था । ये गुण्डे लोग अपने और साथियों को भी बुलवा लेते थे । किसी किसी दिन तो दस से भी ज्यादा आदमी है जाते थे । पता नहीं ईश्वर की क्या इच्छा थी कि इतने अत्याचार सहकर भी मैं मरी नहीं और दुख झेलने के लिए जिंदा रही ।
एक दिन मैंने उन गुण्डों के चेहरों पर भय देखा । कह रहे थे कि अब कोई दूसरा नेता मुख्य मंत्री बन गया है और वह गुण्डों मवालियों के लिए काल की तरह आया है । उसने पुलिस पर नियंत्रण करते हुए पुलिस को आदेश दे दिया बताया कि वह गुण्डों को सीधा जन्नत का टिकट कटा दे । वे कह रहे थे कि शायद पुलिस को सूचना हो गई है । इसलिए वे लोग वहां से भाग खड़े हुए और मैं अकेली रह गई । मौका हाथ आया जानकर मैं भी वहां से भाग छूटी और ट्रेन में बैठकर यहां दिल्ली आ गई ।
दिल्ली में दुनिया आती है । यहां कोई स्वागत नहीं करता फिर भी लोग दौड़े चले आते हैं । मैं बेसहारा सी सड़कों पर काम की तलाश में घूमने लगी लेकिन कोई काम नहीं मिला । दूसरे दिन भरी दोपहर का समय था । खाने को पैसे नहीं थे और शरीर बहुत निर्बल था । धूप में चक्कर खाकर गिर पड़ी और बेहोश हो गई । तब एक आदमी जो इस वाइन बार का मालिक है की निगाह मुझ पर पड़ी । वह मुझे अपने इस वाइन बार में ले आया । मेरे मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारे तो मुझे होश आ गया । तब उन्होंने मुझे कोल्ड ड्रिंक पीने को दिया । खाना भी खिलाया । तब मुझे बार में काम करने का मौका मिला ।
मैं आपको रोज यहां आते हुए देखती थी और सोचती थी कि यह आदमी कितना मूर्ख है जो वाइन बार में सॉफ्ट ड्रिंक पीने के लिए आता है । लेकिन आपकी आंखों से और मासूम चेहरे से मुझे अहसास हुआ कि तुम यहां सॉफ्ट ड्रिंक पीने नहीं आते बल्कि कोई और कारण है यहां आने का । आज देखो, हम लोग एक दूसरे की कहानी सुन रहे हैं" उसने कृत्रिम मुस्कुराहट के साथ कहा ।
"तुम सचमुच में बहुत महान हो अनुसूइया जी । इतने कष्टों के बाद भी इतना संयम ? इतना धैर्य ! आप धन्य हैं देवी" । आनंद ने अनुसूइया के दोनों हाथ थामकर कहा ।
शेष अगले अंक में
श्री हरि
12.4.23
अदिति झा
16-Apr-2023 08:40 AM
Nice 👍🏼
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Hari Shanker Goyal "Hari"
18-Apr-2023 03:13 PM
🙏🙏
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सीताराम साहू 'निर्मल'
14-Apr-2023 11:40 AM
बेहतरीन भाग
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Hari Shanker Goyal "Hari"
18-Apr-2023 03:13 PM
🙏🙏
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